मेवाड़ के उन वीरों की
हस्ती अभी भी बाक़ी है।
फिर से जन्मेगा प्रताप
ये उम्मीद अभी भी बाक़ी है।।
मान बढ़ाया जग में जिसने
उन वीरों की क्या बात करूँ?
क्या कुंभा, क्या राणा सांगा,
चेतक की मैं साख भरूँ।
भूखे-प्यासे फिरे वनों में
वो वीर बड़े अभिमानी थे!
फिर से जन्मेगा प्रताप
ये उम्मीद अभी भी बाक़ी है।।
जौहर की लपटों से खेली
पद्मिनी-सी नार यहाँ।
आन के ख़ातिर लड़े समर में
सिसोदा सरदार जहाँ।
क्या जयमल, क्या पत्ता गौरा,
बादल की जवानी है।
फिर से जन्मेगा प्रताप
ये उम्मीद अभी भी बाक़ी है।।
रण ख़ातिर सर काट दे दियो
उस वीर मही क्षत्राणी ने।
धर पुरुष को रूप समर में
रण कियो कर्मा रानी ने!
अमर हो गये अमरसिंह भी
इस दानी भामाशाह की माटी में।
फिर से जन्मेगा प्रताप
ये उम्मीद अभी भी बाक़ी है।।
पन्ना का तो त्याग देखकर
कर्णराज भी शरमाया होगा।
मीरा की भक्ति के आगे
राधा का मन भी घबराया होगा!
कैसे भूला सकता हूँ मैं
कुँवरी कृष्णा भी अभिमानी है।
फिर से जन्मेगा प्रताप
ये उम्मीद अभी भी बाक़ी है।।
चित्तौड़ी बुर्जा दिवेर समर
हल्दीघाटी या देसूरी।
उदियापुर ‘अनमोल’ रत्न
चावंड भौम या कोल्यारी!
गोगुन्दा से मांडलगढ़ तक
लम्बी एक कहानी है।
फिर से जन्मेगा प्रताप
ये उम्मीद अभी भी बाक़ी है। …
जय माँ बायण
जय एकलिंग जी
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